Thursday, August 26, 2010

ये कॉमनवेल्थ क्या बला है...




कॉमनवेल्थ खेल हैं क्या मैने सोचा क्यों ना ये सवाल दिल्ली से 400-500 किलोमीटर दूर जा कर आम भारतीयों से पूछा जाए...मैंने सोचा शुरुआत वाघा बार्डर के करीब गांवों से करता हूं। इससे पहले मैं किसी से कुछ पूछता शताब्दी ट्रेन में मुझसे ही इंग्लैंड से आए एक विदेशी जोड़े ने पूछ लिया...क्या खेल हो पाएंगे...आपका मीडिया तो नेगेटिव ही बता रहा है...मैंने जैसे-तैसे समझा कर राहत की सांस ली...मैंने समझा तो दिया कि खेल तो होंगे लेकिन किस स्तर के होंगे कह नहीं सकता...मैं झूठी उम्मीद क्यों बंधाता...इन विदेशी सवालों ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि यार अपने भारत की साख तो मजाक-मजाक में दांव पर लग गई है...जिस तरह हमारे पीएम साहब आजकल खेलों को लेकर परेशान है...मैं भी थोड़ा परेशान हुआ...मैंने सोचा कि पहले तो मेरे और पीएम की बीच तीन ही समानताएं थी...लो अब चार हो गईं...पहली उनका गृह नगर अमृतसर है और मेरा भी...दूसरी वो भी आजकल दिल्ली में रहते है....मैं भी... तीसरी वो खेलों के आयोजन को लेकर परेशान हैं....मैं भी। चौथी वो खेलों की खबरों को करीब से पढ़ते-देखते हैं और मैं भी...मेरा पत्रकार का पेशा ही ऐसा है खेलों की हर खबर पर नजर रखनी पढ़ती है। खैर मैंने पूछना शुरू किया तो हर 10 में 9 लोगों को पता ही नहीं था ये कॉमनवेल्थ क्या बला है...दिल्ली में रहते हुए हम और आप तो जानते हैं लेकिन आम भारतीय तो महंगाई पर लगाम लगनी चाहिए ये चाहत रखता है। कुछ अच्छे जवाब थे खेलों से पेट नही भरेगा...ये खेल-सेल क्या है जी हमें क्या मतलब, कॉमनवेल्थ तो एक देश का नाम है जी...उस कंट्री का वीजा लग जाएगा....ये तो पंजाब के लोग थे...आप भारत में दिल्ली से दूर कही भी आजमा सकते है ऐसे ही जवाब मिलेंगे। खेलों पर हमारा 12 हजार करोड़ से ज्यादा पैसा लग गया...ये मजाक तो नहीं था...अब मैं भी पीएम की तरह दुआ ही कर सकता हूं मेरे भारत की साख को दाग ना लगे। क्योंकि दुआ से ही चमत्कार हो सकता है...चमत्कार से ही खेलों का बेड़ा पार हो सकता हैं....

Saturday, August 21, 2010

पाक बाढ़ की तस्वीर

पाकिस्तान बने पूरे 63 साल हो गये... पड़ोसी देश के इतिहास में अब तक की सबसे भीषण बाढ़ आयी हुई है.. लगभग 17 हजार लोगों को बाढ़ ने लील लिया है। लाखों लोग बेघर हो गए...पाक सरकार बड़ी बेबस नजर आ रही है...आर्थित तौर पर पहले ही कमजोर हमारे पड़ोसी की कमर बाढ़ ने तोड़ दी है...सारी दुनिया पाक की मदद के लिए आगे आ रही है...पड़ोसी देश सबकी मदद ले रहा है लेकिन भारत की 23 करोड़ की मदद लेने में शर्म
आ रही है...वाघा के रास्ते आलू की खेप लाहौर पहुंच चुकी है...तीन युद्ध लड़े है पड़ोसी को शर्म तो आएगी ही..वैसे पाक में कुछ लोग बाढ़ के लिए भी भारत को दोष दे रहे हैं...कहते है भारत ने पानी ज्यादा छोड़ दिया... भारत में भी कुछ लोग पाक को मदद देना सही नहीं मानते..कोई उनको समझाये कि बाढ़ से जूझ रहे आम पाकिस्तानी भारत के दुश्मन नहीं है...दुश्मन तो चंद लोग है जो हमेशा भारत के खिलाफ साजिश रचने को तैयार रहते हैं...लेकिन ये बाढ़ बहुत बड़ी है...मुझे ये करीब से देखने को रोज़ मिलता है क्योंकि टीवी प्रोडक्शन से जुड़ने के चलते वीजूयल्स को काट-छाट कर चलाना पड़ता है...कैसे मदद के लिए बांटे जा रहे पैकेट पाने के लिए भीड़ भागती है...मुझे 1947 की याद दिलाती है...एक तरफ बंटवारे के बाद भारत बहुत आगे बढ़ा गया..वहीं पाक हर मसले पर भारत से बहुत पीछे नजर आता है,,,यही बात पड़ोस में बैठे कुछ लोगों को बहुत चुबती है...
पाक ने हाल ही में माना है कि देश को भारत से ज्यादा खतरा घरेलू तालिबान से है...उम्मीद है कि ये बात पाक शासकों को भी जल्द समझ आ जाए...वैसे मुझे पड़ोसी देश में अपने पुश्तेनी घर की बड़ी फिक्र हो रही है..सुना है पाक पंजाब का वो हिस्सा भी बाढ़ की चपेट में है...मैं सिर्फ दुआ के अलावा कुछ भी नहीं कर पा रहा हूं... नीचे आप कुछ तस्वीरों में बाढ़ का भयानक रुप देख सकते हैं।

पाक की दूसरी तस्वीर








नीचे ब्लॉग में आप विस्तार से बाढ़ पर पढ़ सकते हैं...

Thursday, August 19, 2010

खेलों में समय कम बचा है...हाहाकार मचा है...

कॉमनवेल्थ खेलों को कम समय बचा है, लेकिन चारों तरफ मानो जैसे हाहाकार मचा है। दिल्ली का पूरा सरकारी तंत्र देर से ही सही ऐसी तैयारी में जुटा है मानो देश में कॉमनवेल्थ खेल नहीं विश्व युद्ध होने वाला है... विश्व युद्ध में हवाई हमलों के शिकार देश मलबे में बदल जाते थे.. साडी दिल्ली भी कुछ ऐसे ही खुदी पड़ी है... मलबे के ढे़र आम है.... फर्क सिर्फ इतना दिल्ली में युद्ध नहीं खेल होने है...लेकिन तैयारियां युद्धस्तर पर जरुर चल रही हैं.
मैं सोचता लोगों को अब क्यों कमियां खल रही है.. पहले हम और आप क्यों मान बैठे थे कि कॉमनवेल्थ खेल हिट होंगे... खैर अभी खेलों को हिट -प्लॉप करार देना जल्दबाज़ी होगी...लेकिन इतना जरुर है कि घोटालों की परते खुलते ही काफी लोगों की कुर्सीयां चली जाएंगी...खेलों का बजट बढ़ते-बढ़ते 12 हजार करोड़ पहुंच गया...कोई कहता 12 नहीं 16 हजार करोड़... ये खुलासे तो खेलों के बाद होने वाले खेलों उर्फ बड़े-बड़े पोल खोलो पर छोड़ देना चाहिए...जवाहार लाल नेहरु स्टेडियम पर 961 करोड़ खर्च होने की बात की जा रही है... कहते है कि नेहरू स्टेडियम की छत पर ही 100 करोड़ का खर्च आ गया..अरे भाई विदेशी कोटेड ग्लास फाइबर से बनी छत है जो बड़े-बड़े आंधी तूफानों से स्टेडियम का बचाव करेगी...जैसे मैंने एक ब्लॉग में पहले भी जिक्र किया था कि थोड़ा बहुत पैसा गेहूं रखने वाले गोदामों की छतों पर भी खर्च कर दिया जाता...तो लाखों टन गेहूं हर साल जाया ना जाता..
दिल्ली की सीएम शीला जी कहती है कि हम तो ओलंपिक के लिए भी तैयार है.. कोई मैडम को समझाये कि वो दिल मजबूत रखे और खेलों के नाम पर आलोचना झेलने के लिए भी जरा तैयार रहे.. खैर आलोचना तो दुनिया में बड़े-बड़ों की हो गई...कोई इससे मजबूत हो गया तो कोई चलता बना.. अब देखते है कि कलमाड़ी साहब क्या रास्ता चुनते थे...फिलहाल तो वो सबसे भागते ही नजर आते हैं..चलिए अब तो पीएम मनमोहन सिंह ने भी कह दिया कि खेलों को राष्ट्रीय पर्व की तरह मनाना चाहिए... दिल्ली वाले तो इसे पर्व की तरह मनाएंगे ही...बच्चों के स्कूल ही जो बंद होंगे... बच्चे इन छुट्टियों का खूब मजा लेंगे और दुआ करेंगे कि ऐसे खेल हर साल हो...जिससे वो छुट्टी मना सके..कहते है कि बच्चों की दुआ भी जल्द कबूल हो जाती है...मुझे पूरी उम्मीद है दुआ तो इस वक्त खेलों से जुड़े अधिकारी और हर वो एजेंसी कर रही होगी...जिसपर गाज गिर सकती हो...मैं और आप इन घोटालेबाज़ों के लिए ना सही... लेकिन खेलों से अपने भारत की लाज बची रहे ये दुआ तो कर ही सकते है...तो चलिए फिर देर किस बात की..अगली बार.हम कॉमनवेल्थ खेलों और कॉमन भारतीयों में कॉमनता पर बात करेंगे...

नीचे आप अपने विचार मुझे बता सकते हैं...

Sunday, August 15, 2010

15 अगस्त ये कैसा दिन...

हर साल 15 अगस्त को मैं एक ही चीज सोचता हूं कि क्या अगस्त महीने की 15 तारीख ज्यादातर भारतीयों के लिए मात्र छुट्टी का दिन बनकर रह गई है... 2010 में इस दिन ने रविवार को आ कर इस बात पर मोहर लगाने की कोशिश भी
कर दी... कभी सोचा है 200 सालों तक गुलाम रहे भारतीय उस तारीख का कितनी बेसब्री से इंतज़ार करते होंगे...जिस दिन वो खुली हवा में सांस ले पाएंगे... वो जो चाहेंगे वो कर पाएंगे...भारत आजाद हुआ कई बलिदानों से... आज भारतीय युवाओं को आमिर खान की 5 फिल्मों के नाम रटे होंगे लेकिन मात्र 5 शहीद जो आजादी के लिए फांसी को चूम गए थे को बताने में पसीने छूट जाएंगे...ये आजाद भारत या आज के भारत की तस्वीर है...हम विचारों से तो आधुनिक हो रहे हैं लेकिन हम आज भी गुलाम है...गुलाम किसके गुलाम..अब अंग्रेज नहीं तो अंग्रेजी के गुलाम हैं हम... आज भारतीय हर जगह अंग्रेजी झाड़ना सम्मान की बात समझते हैं और हिन्दी बोलना अपमान समझा जाने लगा है। हमारे पड़ोसी देश चीन और रुस से हमें कुछ सीख लेने की जरूरत है...इन देशों में भी अंग्रेजी बोली जाती है लेकिन सिर्फ गुजारे के लिए.. जिससे वो दुनिया को समझ सके और उसका जवाब दे पाएं... उनकी राष्टभाषा उनके लिए सम्मान की बात है..और हमारे लिए अब तो बहुत देर हो गई लगती है...1947 के बाद ही ये कार्य शुरू किया जाना चाहिए.. आजादी के बाद जैसा सारा भारत जनसंख्या बढ़ाने में जुट गया...हमारी सरकार जब जागी तो ये आंकड़ा 100 करोड़ पार कर गया था
.हमारा देश बड़ी तेज़ी से आगे बढ़ रहा है... पर उतनी ही तेज़ी से हमारे संस्कार पीछे छुटते जा रहे हैं...
1923 में एक पंजाबी युवक कहा करता था कि गौरे साहब जाएंगे तो भूरे साब आ जाएंगे...जो देश को खूब खाएंगे...वो हमारे नेता कहलाएंगे... ये भविष्यवाणी आजाद भारत पर बड़ी फिट बैठती है...वो युवक थे शहीद भगत सिंह.. देश के लिए छोटी सी उम्र में फांसी को चूमना... ये बात मुझे आज भी मुझे प्रेरित कर जाती है...
शहीदों की देशभक्ति मुझे कहती है कि उनके बलिदान ना जाएं जाया
मेरे भारत को फिर से गुलाम ना जाए बनाया... गुलाम ना जाए बनाया...

Thursday, August 12, 2010

मेरे देश में गेहू सड़ रहा है...

आज देश चाहे जितनी तेज़ी से आगे बढ़ रहा है....

क्या दुनिया में ऐसा भी कोई देश है जहां इतना गेहूं सड़ रहा है

मै आपसे और अपने आप से पूछता हूं ये सवाल, खेलों के नाम पर छली गई आम जनता की खाल

कॊमनवेल्थ के नाम पर जितना उड़ाया गया सरकारी माल, तो गेहूं छुपाने में क्यों रहे हम कंगाल

स्टेडियमों को खूब चमकाया जा रहा है, लेकिन हमसे आजादी के 60 साल बाद भी गेहूं नहीं छुपाया जा रहा है

आज देश में गरीब भूख से मर रहा है..दो जून की रोटी के लिए लड़ रहा है... लेकिन मेरे देश में गेहूं सड़ रहा है... गेहूं सड़ रहा है

खेलों के बजाए इतना पैसा अगर गोदामों पर लगाया जाता.. तो मेरे देश का सोना...गेहूं जाया ना जाता..

देश में ऐसे बड़े खेल बेशक होने चाहिए.. लेकिन उससे पहले हमारे देशवासी भरपेट सोने चाहिए..

बच्चों भूख से नहीं रोने चाहिए... हर बच्चे के स्कूल जाने के सपने नहीं खोने चाहिए..आज मध्यवर्गीय भारतीय महंगाई से लड़ रहा है....जरुरी सामान खरीदने से पहले हमें क्यों सोचना पड़ रहा है...लेकिन मेरे देश में गेहूं सड़ रहा है... गेहूं सड़ रहा है...

पंजाब में थाली में अन्न छोड़ना पाप माना जाता है, लेकिन शर्म से ये बताना पड़ रहा है कि सबसे अधिक

गेहूं वही गेहूं सड़ रहा है.. और आंकड़ा बाकि राज्यों में भी बढ़ रहा है...हर राज्य सरकार का नुमाइंदा केंद्र पर आरोप मढ़ रहा है.. लेकिन मेरे देश में गेहूं सड़ रहा है...मेरे देश में गेहूं सड़ रहा है...