Monday, October 25, 2010

हिट- फिट करवाचौथ क्या है...






करवाचौथ को कुछ ही घंटे शेष हैं और बाजारों में महिलाओं का जमकर खरीददारी का दौर चल रहा है...बाजार हो या बॉलीवुड हर किसी ने करवाचौथ के व्रत को खूब भुनाया है...अक्सर मेरे दिल में करवाचौथ को लेकर कई सवाल उठते रहे हैं...मैं भारतीय महिलाओं की तपस्या या व्रत पर सवाल नहीं उठाने जा रहा हूं जो अपने पति की लंबी उम्र के लिए सदियों से करवाचौथ रखती आई हैं...क्योंकि मैंने बचपन से अपनी मां को भी करवाचौथ का व्रत रखते और इसकी तैयारी के लिए उतावलापन देखा है...शाम को प्यासे चेहरे को बड़ी हिम्मत के साथ चांद का इंतज़ार करते देखा है...लेकिन सवाल कई खड़े होते हैं कि हमारे देश में हमेशा व्रत, सारे नियम महिलाओं के लिए क्यों बने...क्यों नहीं मर्दों के लिए हमारे देश में सदियों से कोई व्रत नहीं बना...क्योंकि उनको पत्नी की लंबी उम्र से क्या लेना...पत्नी मर भी जाएगी तो दूसरी शादी हो जाएगी...लेकिन अगर एक औरत का पति उसके जीते जी मर जाए तो उसके लिए सती प्रथा भी इसी देश में थी जो समाज के ठेकेदारों ने ही बनाई होगी। आज के दौर में उत्तर भारत का ये व्रत पूरे देश में मनाया जाने लगा तो इसमें यश चोपड़ा की फिल्मों का अहम रोल है...डीडीएलजे में सिमरन ने राज के लिए जो किया...आज ज्यादातर हर युवा कर गुजर सकता है...युवा सच में यश चोपड़ा के शुक्रगुजार है कैसे पंजाबी व्रत को देश भर में हिट कर दिया...जालंधर छोड़े हुए उनको पांच दशक हो गए...लेकिन यश चोपड़ा ने अपनी फिल्मों में ऐसा पंजाबी तड़का लगाया कि सारा बाजार कायल हो गया...शाहरुख सुपरस्टार बन गए यश जी के चलते...यश जी की फिल्में हिट हुईं करवाचौथ के फेर में...
लेकिन उन महिलाओं को सलाम करने को दिल बार-बार करता है जो सदियों से कष्ट सहकर भी ऐसे व्रत का पालन करती आई है...चाहे वो आज की गृहिणी हो जा जेट उड़ाने वाले महिला पायलट...
आज नये शादीशुदा जोड़े या पति देव या ब्वॉयफ्रेंड अपनी संगिनी को खुश करने के लिए व्रत रखते हैं...उम्मीद करता हूं कि वो ताउम्र ऐसा कर सकें...लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि मै नही चाहता कि मेरी श्रीमति भी मेरे लिए व्रत रखें..
क्योंकि मेरे हाथों में उम्र की रेखा पहले ही काफी लंबी है..इस लिए मेरी लंबी उम्र के लिए कोई दर्द क्यों सहें...जो मैं देख ना पाऊं....उम्मीद करता हूं वो शायद इसे समझ इसे समझ पाएगी।...

Monday, October 11, 2010

पहले मेट्रो कोच में सुहाना हुआ सफर...मगर



महिलाओं के नाम हो चुका है दिल्ली मेट्रो का पहला कोच...वाकई किसी ने सोचा ना था महज चार कोच वाली मेट्रो का एक कोच महिलाओं को इतनी जल्द मिल जाएगा...इस कोच ने जहां महिलाओं को काफी राहत पहुंचाई है...वहीं कुछ लोगों को ये बात गले नहीं उतर रही कि पहला कोच महिला स्पेशल होने के चलते पूरा भरता भी नहीं...वहीं बाकी कोच खचाखच भरे रहते हैं...अरे भैया भरे भी रहते हैं तो मर्दों से ही ना...सीधा क्यों नहीं कहते कि महिलाओं के ना साथ चलने से ग्लैमर कम हो गया है...कुछ लोगों का कहना है कि एक कोच नया जोड़ दिया जाता जिसको महिला स्पेशल बना देते...अब भाई साहब राय देने का कौन सा टैक्स लगता है...कुछ भाई साहब तो पहले कोच में ही सवार होना शान समझते हैं...सब कुछ जान कर भी अंजान खड़े रहते हैं...ये बाबू टस से मस तभी होंगे जब डीएमआरसी पकड़ कर जुर्माना लगाएगी.... कोच नंबर दो से ये नजारा साफ दिखता है जैसा मैंने देखा है....महिला कोच के चलते जहां महिलाओं ने राहत की सांस ली...वहीं ये कोच कुछ प्रेमी जोड़ों का भी प्यार का दुश्मन बन बैठा है... द्वारका लाइन पर एक जोड़ा हाथों में हाथ लिए खचाखच भरे कोच नंबर दो में सवार होता है...भीड़ के चलते लड़की पहले कोच की तरफ बढ़ती है...बेचारा लड़का वहीं खड़ा रहता है...लड़की महिला कोच से प्यार भरे...तो कभी गुस्से भरे इशारे करती है...लेकिन दूसरे कोच के किनारे से आदर्शवादी लड़का हिम्मत नहीं जुटा पा रहा...लड़की वापस आती है...हाथ पकड़ कर लड़के को महिला कोच में ले जाती है...लड़के को आंटियां एक अपराधी की तरह देख रही हैं जैसे वो कसाब का छोटा भाई हो...प्यार भरी कोई बात भी नहीं हो पा रही...पहले तो आधे घंटे का सफर किसी भी कोच में बिंदास कटता था...लेकिन अब लड़की को दूसरे कोच की भीड़ से दिक्कत तो लड़के को आंटियों से...
दिल्ली मेट्रो ने 2002 में अपनी शुरुआत से ही लाखों लोगों की जिंदगी आसान बना दी...वहीं सैकड़ों प्रेमी जोड़े का इश्क भी मेट्रो स्टेशनों या मेट्रो में रंग लाया होगा...इसके गवाह हम और आप ही नहीं स्टेशनों की वो सीढ़ियां भी है जिन पर कई जोड़ों ने अपनी डेट पूरी की होगी...डीएमआरसी को एक कोच ऐसे महान जोड़ों के नाम करने पर भी विचार करना चाहिए...जब जेएनयू कैंपस में प्रेमी जोड़ों के नाम जगह दी जा सकती है तो मेट्रो में क्यो नहीं....जहां मेट्रो का पहला कोच लेडीज स्पेशल होना तारीफ के काबिल है...विरोध होना तो सामान्य है...जब-जब इस देश में महिलाओं को किसी भी क्षेत्र में आरक्षण दिया जाएगा तो थोड़ा शोर-शराबा तो होगा ही...क्योंकि कुछ को आदत नहीं है ऐसे आरक्षणों को हजम करने की...