Thursday, September 9, 2010

महिलाओं का सम्मान क्यों करें...


बचपन से पढ़ता-सुनता आया हूं कि भारतीय सनातन संस्कृति दुनिया में सबसे पुरानी है...कभी-कभी मैं सोचता हूं कि जिस देश में राखी जैसा पवित्र त्यौहार मनाया जाता रहा है...उसी देश में दुनिया के सबसे ज्यादा इव टीजर्स होंगे..बड़ी शर्म की बात है..आखिर ये उसी देश में क्यों जहां बहन को सदियों से भाई रक्षा का वायदा देते रहे हैं...आज भी ज्यादातर भाई अपनी बहन की तो सुरक्षा चाहते हैं लेकिन दूसरे की बहन की ऐसी-तैसी..कोई अपनी बहन को छेड़ दे तो उसे कच्चा चबाने का दम रखते हैं...भई मर्द जो ठहरे..गुस्सा तो आता ही होगा..लेकिन ये कैसी मर्दानगी जिसमें दूसरी की बहन को छोड़ो मत...और हमारी बहन को छेड़ो मत...लेकिन हर भाई ऐसा है ये मैं नहीं कहता...मेरे कई काबिल दोस्त ऐसे हैं जिन्होने कभी इव टीजिंग में हिस्सा नहीं लिया...मेरा मानना है कि ये चीजें संस्कारों से मिलती हैं..जैसा कीड़ा बचपन में बैठ गया वैसे ही हम-आप बन गए..शहरी भारत को छोड़ दे तो आज भी महिलाएं अपने हकों के लिए जूझ रही हैं...सच तो ये है .मेरी ये बातें कुछ मर्दों को चुब जाती हैं...मैं अक्सर ये सवाल पूछता हूं -कि कितनी बार बस-ट्रेन में अगर कोई महिला खड़ी हैं तो उसे आपने सीट आफर की है...हां कोई खूबसूरत लड़की होगी तो उसे सीट मिलने के चांस ज्यादा होते हैं..हम अगर ये सोच ले कि मेरी थकी मां अगर इस आंटी की जगह खड़ी हो तो हम सीट देंगे जा नहीं...ये अपने दिल से पूछ सकते हैं...जवाब मिल जाएगा...ये मेरा आज़माया हुआ फॉर्मूला है...इस लिए मुझसे महिलाओं की इज्जत हो जाती है...और बुरे कर्मों से बच जाते हैं हम...मैं एक सवाल और पूछता हूं कि कितनी बार किसी लड़की के कम कपड़े देख कर आपकी नजरे झुक गयी...या नहीं...मानते हैं कि कम कपडे़ थे लेकिन सारा दोष लड़की पर फिर से...ये हमारे समाज का हिस्सा बन चुका है...मुझे लगता है कि महिलाएं भी इस फितरत को बखूबी समझती होंगी....ज्यादातर खोट दिमागों में भरी हुई है...जिनके कीड़ों की सफाई बहुत जरुरी है....बहुत जरुरी है.

Tuesday, September 7, 2010

एक था सतीश...एक है कॉमनवेल्थ का शेरा


शेरा कॉमनवेल्थ खेलों का शुभंकर...इसे हम लोग रोज़ टीवी पर, बैनरों पर अक्सर देख ही लेते हैं...लेकिन इस मास्क के पीछे के चेहरे को मैंने देखा है...बड़े करीब से...शेरा बने सतीश की कहानी बड़ी दिलचस्प है...चंडीगढ़ से काम की तलाश में दिल्ली के चक्कर लगाना...और फिर अचानक शेरा बनने के बाद जिंदगी ने कैसी करवट ली...ये तो चैनल, अखबार सभी ने छापा...कुछ ऐसी चीज़े भी है...जो सतीश कभी किसी को नहीं बताता..मुझे याद है जब दो महीने पहले मैं कॉमनवेल्थ हेडक्वार्टर में शेरा पर स्टोरी करना गया तो सतीश से मेरी पहली मुलाकात हुई...लेकिन खेलों का शुभंकर वहा हाउसकीपिंग का काम भी करता है..देख मुझे हैरानी हुई..सतीश ने बताया कि वो यही काम करने आया था...लेकिन आयोजकों ने, शेरा की जो ड्रेस बन कर आयी थी..उसे पहनने को कहा..मैं पहन कर आया..सर को वो भा गया...बस ऐसे बन गया खेलों का शुभंकर शेरा...सतीश ने मुझे कई निजी बातें भी बताई...चाहता तो अपनी स्टोरी में और मसाला डालने के लिए चला सकता था...लेकिन मेरे दिल ने साथ नहीं दिया...क्योंकि मुझे पता था कि मसाले के बिना भी मेरी स्टोरी हिट होगी,...हुआ भी कुछ ऐसे ही..सतीश अक्सर मुझसे फोन पर कई चटपटी बातें करता है...एक दिन उसके मुंह से निकल गया कि वो आजतक चैनल (जहां मैं रोज़ी-रोटी कमा रहा हूं...) में सबको जानता है,,,मैंने कहा कैसे...शेरा का कहना था कि वहा उसका दोस्त हाउसकीपिंग करता रहा है...मैंने पूछा सतीश अगर तुम भी करते रहे हो..तो क्या हुआ...कोई काम छोटा नहीं है...आज तुम कितना बड़ा काम कर रहे हो शेरा बनकर...सतीश ने खामोश रहकर भी मेरे सवाल का जवाब दे दिया...लेकिन आपने कभी सोचा है जो शेरा खेलों को प्रमोट करने में रात-दिन एक कर रहा है...उसे आजकल एक डर भी सताता है...खेलों के बाद कही गुमनामी में खो जाने का डर...अक्सर 10 किलो की ड्रेस में हमेशा हंसना आसान नहीं...मास्क पहन कर वो अगर रोता भी है...तो भी हम और आप उसे देख नहीं सकते...मैंने देखा है करीब से...भारत में 'save the tigers' नाम की एक मुहिम चल रही है..मैंने और मेरे एक काबिल दोस्त ने भी शेरा के लिए कुछ करने की सोची है...तांकि वो खेलों के बाद कही फिर से गुमनामी के अंधेरे में ना खो जाए...