Monday, October 11, 2010
पहले मेट्रो कोच में सुहाना हुआ सफर...मगर
महिलाओं के नाम हो चुका है दिल्ली मेट्रो का पहला कोच...वाकई किसी ने सोचा ना था महज चार कोच वाली मेट्रो का एक कोच महिलाओं को इतनी जल्द मिल जाएगा...इस कोच ने जहां महिलाओं को काफी राहत पहुंचाई है...वहीं कुछ लोगों को ये बात गले नहीं उतर रही कि पहला कोच महिला स्पेशल होने के चलते पूरा भरता भी नहीं...वहीं बाकी कोच खचाखच भरे रहते हैं...अरे भैया भरे भी रहते हैं तो मर्दों से ही ना...सीधा क्यों नहीं कहते कि महिलाओं के ना साथ चलने से ग्लैमर कम हो गया है...कुछ लोगों का कहना है कि एक कोच नया जोड़ दिया जाता जिसको महिला स्पेशल बना देते...अब भाई साहब राय देने का कौन सा टैक्स लगता है...कुछ भाई साहब तो पहले कोच में ही सवार होना शान समझते हैं...सब कुछ जान कर भी अंजान खड़े रहते हैं...ये बाबू टस से मस तभी होंगे जब डीएमआरसी पकड़ कर जुर्माना लगाएगी.... कोच नंबर दो से ये नजारा साफ दिखता है जैसा मैंने देखा है....महिला कोच के चलते जहां महिलाओं ने राहत की सांस ली...वहीं ये कोच कुछ प्रेमी जोड़ों का भी प्यार का दुश्मन बन बैठा है... द्वारका लाइन पर एक जोड़ा हाथों में हाथ लिए खचाखच भरे कोच नंबर दो में सवार होता है...भीड़ के चलते लड़की पहले कोच की तरफ बढ़ती है...बेचारा लड़का वहीं खड़ा रहता है...लड़की महिला कोच से प्यार भरे...तो कभी गुस्से भरे इशारे करती है...लेकिन दूसरे कोच के किनारे से आदर्शवादी लड़का हिम्मत नहीं जुटा पा रहा...लड़की वापस आती है...हाथ पकड़ कर लड़के को महिला कोच में ले जाती है...लड़के को आंटियां एक अपराधी की तरह देख रही हैं जैसे वो कसाब का छोटा भाई हो...प्यार भरी कोई बात भी नहीं हो पा रही...पहले तो आधे घंटे का सफर किसी भी कोच में बिंदास कटता था...लेकिन अब लड़की को दूसरे कोच की भीड़ से दिक्कत तो लड़के को आंटियों से...
दिल्ली मेट्रो ने 2002 में अपनी शुरुआत से ही लाखों लोगों की जिंदगी आसान बना दी...वहीं सैकड़ों प्रेमी जोड़े का इश्क भी मेट्रो स्टेशनों या मेट्रो में रंग लाया होगा...इसके गवाह हम और आप ही नहीं स्टेशनों की वो सीढ़ियां भी है जिन पर कई जोड़ों ने अपनी डेट पूरी की होगी...डीएमआरसी को एक कोच ऐसे महान जोड़ों के नाम करने पर भी विचार करना चाहिए...जब जेएनयू कैंपस में प्रेमी जोड़ों के नाम जगह दी जा सकती है तो मेट्रो में क्यो नहीं....जहां मेट्रो का पहला कोच लेडीज स्पेशल होना तारीफ के काबिल है...विरोध होना तो सामान्य है...जब-जब इस देश में महिलाओं को किसी भी क्षेत्र में आरक्षण दिया जाएगा तो थोड़ा शोर-शराबा तो होगा ही...क्योंकि कुछ को आदत नहीं है ऐसे आरक्षणों को हजम करने की...
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grt blog manu bhaiya...i love it
ReplyDeleteसर आप बहुत ही अच्छा लिखते हैं...मजा आ जाता है..मैं भी आपका फैन हो गया हूं...
ReplyDeleteteri blogging mast hai dost...melbourne se best wishes from all friends...pehle to shayar tha blogger banaya kisne...
ReplyDeletewah sirji..
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