

कॉमनवेल्थ खेल हैं क्या मैने सोचा क्यों ना ये सवाल दिल्ली से 400-500 किलोमीटर दूर जा कर आम भारतीयों से पूछा जाए...मैंने सोचा शुरुआत वाघा बार्डर के करीब गांवों से करता हूं। इससे पहले मैं किसी से कुछ पूछता शताब्दी ट्रेन में मुझसे ही इंग्लैंड से आए एक विदेशी जोड़े ने पूछ लिया...क्या खेल हो पाएंगे...आपका मीडिया तो नेगेटिव ही बता रहा है...मैंने जैसे-तैसे समझा कर राहत की सांस ली...मैंने समझा तो दिया कि खेल तो होंगे लेकिन किस स्तर के होंगे कह नहीं सकता...मैं झूठी उम्मीद क्यों बंधाता...इन विदेशी सवालों ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि यार अपने भारत की साख तो मजाक-मजाक में दांव पर लग गई है...जिस तरह हमारे पीएम साहब आजकल खेलों को लेकर परेशान है...मैं भी थोड़ा परेशान हुआ...मैंने सोचा कि पहले तो मेरे और पीएम की बीच तीन ही समानताएं थी...लो अब चार हो गईं...पहली उनका गृह नगर अमृतसर है और मेरा भी...दूसरी वो भी आजकल दिल्ली में रहते है....मैं भी... तीसरी वो खेलों के आयोजन को लेकर परेशान हैं....मैं भी। चौथी वो खेलों की खबरों को करीब से पढ़ते-देखते हैं और मैं भी...मेरा पत्रकार का पेशा ही ऐसा है खेलों की हर खबर पर नजर रखनी पढ़ती है। खैर मैंने पूछना शुरू किया तो हर 10 में 9 लोगों को पता ही नहीं था ये कॉमनवेल्थ क्या बला है...दिल्ली में रहते हुए हम और आप तो जानते हैं लेकिन आम भारतीय तो महंगाई पर लगाम लगनी चाहिए ये चाहत रखता है। कुछ अच्छे जवाब थे खेलों से पेट नही भरेगा...ये खेल-सेल क्या है जी हमें क्या मतलब, कॉमनवेल्थ तो एक देश का नाम है जी...उस कंट्री का वीजा लग जाएगा....ये तो पंजाब के लोग थे...आप भारत में दिल्ली से दूर कही भी आजमा सकते है ऐसे ही जवाब मिलेंगे। खेलों पर हमारा 12 हजार करोड़ से ज्यादा पैसा लग गया...ये मजाक तो नहीं था...अब मैं भी पीएम की तरह दुआ ही कर सकता हूं मेरे भारत की साख को दाग ना लगे। क्योंकि दुआ से ही चमत्कार हो सकता है...चमत्कार से ही खेलों का बेड़ा पार हो सकता हैं....