Wednesday, November 3, 2010
मेरा लैंडलाइन दुनिया छोड़ गया...
आज मैं थोड़ा परेशान हूं...क्योंकि मेरे घर का लैंडलाइन फोन कट गया हमेशा के लिए...मेरा दोस्त...0183-2276504...परिवार में सभी इसको लंबे समय से कटवाना चाहते थे...मैंने हमेशा इसका विरोध किया...हम तो घर से पहले ही अपने मंजिल की तलाश में निकल चुके थे...घरवालों ने फोन को भी घर निकाला दे दिया...मैंने लाख जानना चाहा तो मेरी मां बोलीं हर कोई तो मोबाइल पर ही फोन करता है...और घर के हर सदस्य के पास मोबाइल है...बेटा तुम भी तो मेरे मोबाइल ही फोन करते हो...लेकिन मेरे लैंडलाइन से मेरी बहुत अच्छी यादें जुड़ी हैं...कईं शरारते जुड़ी है...फोन ने मुझे स्कूल के होनहार विद्यार्थी से कॉलेज की राजनीति का वाइस प्रेजिडेंट बनते देखा...मास कॉम की कक्षा में अव्वल आने की खबर भी सुनाई...
मेरे दोस्त लैंडलाइन का जन्म... मुझे आज भी याद है जब मैं कक्षा पांच में था...तब हमारे घर लैंडलाइन की नींव पड़ी...घर में अजब खुशी का माहौल था...फोन लगाने वाले बीएसएनएल कर्मचारियों को कैश बधाई के बाद...घर में पड़ोसियों की भीड़ को खुशी में बरफी परोसी गई...पंजाबी तो वैसे ही खुश होने का बहाना तलाश लेते हैं...ये खुशी उस युग में बहुत बड़ी थी...मेरी दादी को खुशी थी कि अब वो तीनों बेटियों से आराम से बात कर पाएंगी...वो फोन की घंटी मुझे आज भी याद है...जब देर रात बजती तो सबकी धड़कने तेज़ हो जाती कि इस वक्त कोई बुरी खबर तो नहीं...क्योंकि लैंडलाइन लगने के कुछ महीने बाद ही मेरे बड़े मामा की मौत की खबर देर रात को ही मेरी मां सुनकर गिर पड़ी थीं...तो ऐसी कई बुरी-अच्छी यादें लैंडलाइन के साथ जुड़ी थी...जब मैं कक्षा 10, 11 में था तो अक्सर ऐसी कॉल आती थी जिसे ब्लैंक कॉल कहते है...मेरी मां कहती थीं कि मेरे घर में कोई बेटी नहीं फिर ये कमबख्त कौन कुड़ी है जो मेरी आवाज सुनकर फोन काट देती है...तेरी तो सहेली नहीं कोई...बेटा वो मुझसे बात करे मैं उसे प्यार से समझाती हूं.. मेरे फोन उठाने पर भी फोन कट जाता...बस पंजाबी गाने सुनते थे...मैं आज तक समझ नहीं पाया कि वो कौन सी फैन थी...ये आज भी पहेली है...खैर मेरे कई दोस्त जो विदेशों में बसे हैं...उनकी जब अपनी बचपन की प्रेमिकाओं से बात ना हो पाती तो दोस्त बेहद दुखी होकर मुझसे मदद मांगते...मेरे से डायलॉग लिखवाते जिसमें..बड़े हौंसले के साथ
लड़की की मां के फोन उठाते ही बोलना कि हैलो आंटी, ममा बोल रहे हैं कि शाम को किटी पार्टी पर आ जाना...बेटे कौन ...आंटी तुसी निर्मल आंटी..नहीं पुतर..ओके आंटी...लैंडलाइन का दौर प्रेमी जोड़ों के लिए बेहद कठिन दौर था...आज तो मोबाइल ने ही प्रेम करने वाले जोड़ों की तादाद देश में बढ़ाई है और ये हमारी आपकी सबकी जिंदगी कहें या परिवार का एक हिस्सा बन चुका है...जिसके चलते हजारों लैंडलाइनों की बलि दी जा रही है...और मेरा प्यारा लैंडलाइन भी उनमें से एक था...
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grt yaar,,,tu shuru se alrounder raha hai...acha likha...love u
ReplyDeleteapne paas abhi bhi hai... jindabaad
ReplyDeleteमोबाइल के इस दौर में लैंडलाइन को याद करना वैसे ही है जैसे आपके बेहद करीब रहे किसी शख्स की यादें...लैंडलाइन घर में एक किरदार ही तो हुआ करता था। मुझे याद है कैसे 10 बजे के बाद कम चार्ज लगता था तो फोन के पास जमावड़ा लगने लगता था और पीपी नंबर...पूछो मत। जिसे देखो एक पीपी नंबर के साथ हाज़िर। ख़ैर, हर याद की तरह लैंडलाइन की यादें भी संजो कर रखने लायक हैं। और हां, मेरे घर अभी एक अदद लैंडलाइन ज़िंदा है..जिसकी बेहतरीन यादें हैं।
ReplyDeletemanu bhaiya...apka blog link mere office vich vi hit ho gaya...bhai full marks again.
ReplyDeleteअपनी चीज अपनी ही होती है चाहे वह उपयोगी हो या नहीं !!!
ReplyDeleteमैं आपका पोस्ट अपने फेसबुक पर शेयर कर रहा हूँ यदि आप इजाजत दे तो yeskanhaiya@rediffmail.com
ReplyDeletehttp://www.powernpolitics.blogspot.com/
kanhaiya ji...plz mera blog share mat kariye...kyonki kuch nizi batein likhi hai ...vaise shukriya aapka...umeed hai apki wishes aage bhi milti rahegi..apka blog behad acha hai...
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