Wednesday, December 29, 2010
तिहाड़ की महिला कैदियों को सलाम
तिहाड़ जेल में 1 साल के अंदर तीसरी बार एक स्टोरी के सिलसिले में जाना हुआ...और महिला जेल में दूसरी बार...तिहाड़ जेल अपने आप एक शहर की तरह बसी है...जेल को कुल 10 जेलों में बांटा गया है...अपराधियों को उनके अपराध के हिसाब से रखा जाता है.. कुल 11500 कैदी हैं...लेकिन तिहाड़ जेल में 5500 कैदियों की ही रहने लायक जगह है. जो भी ये जेल दक्षिण-पूर्व एशिया की सबसे बड़ी जेल है...और बात करे अगर तिहाड़ की महिला जेल की जो जेल नंबर 6 कहलाती है...जिसमें 500 महिला कैदी हैं. महिला कैदियों पर स्टोरी करते हुए मुझे और मेरे कैमरामैन को तीन बार चैकिंग से गुजरना पड़ा...हमारे जूते तक दो बार खुलवाए गए...मेरे कैमरामैन लाल-पीले हो गए कि हम तो पहले भी तिहाड़ में आए हैं पर ऐसी चैकिंग पहले तो कभी नहीं हुई...मैने याद दिलाया कि हम महिला जेल में हैं...जहां हमारे चैनल की दो ही टीमें पहुंच पाईं हैं...जिनमें से एक हमारी टीम है...क्योंकि जब तक डीजी ओके नहीं करते...तब तक महिला जेल तक पहुंच पाना नामुमकिन है...पिछले साल महिला कैदी के गर्भवति होने के बाद मीडिया का पहुंच पाना नाको चने चबाने से कम नहीं...खैर हमारे मोबाइल, पर्स जमा कर लिए गए...अगर सही कहें तो हमारे कपड़े और कैमरे का ही साथ था...आखिकार हम सैलून में पहुंच गए...जिसकी हम स्टोरी के लिए पहुंचे थे...कैमरामैन संजीव के मुंह से निकला वाह...क्या ये जेल है या स्वर्ग है..हमारे पास कुछ मिनट का ही समय था...मैने जल्द शोट बनाने को कहा...सैलून में लगभग 25 कैदी थी जिनको जेल में सैलून की ट्रेनिंग हबीब की टीम दे रही थी...मैंने पिछले साल दीवाली पर इस जेल में एक स्टोरी की थी....कुछ चेहरों को पहचानने की कोशिश कर ही रहा था कि दो महिला कैदी आईं और अंग्रेजी में बोली कि प्लीज डान्ट शूट अस..इसी बीच एक 35 के करीब की कैदी पानी लेकर आईं...उन्होने कहा मेरी भी फिल्म मत बनाना...आपने मुझे पहचाना देवगन जी...मैंने कहा हां ...आपने पिछली बार भी यही कहा था....फिर उन्होने कहा कि आप बहुत स्मार्ट लग रहे हो...ये सुनकर मुझे लगा कि मैं कोई बड़ा स्टार हूं और इधर-उधर से कई चेहरे मुझे निहार रहे थे...कैमरामैन बोले जनाब टीआरपी अच्छी है...पर ये स्टार तो अपनी पीटीसी की लाइने भूल गया था...वक्त बहुत कम था...बड़ी मुश्किल से पीटीसी मन में याद कर की जा सकी...महिलायों के चेहरे पर सीखने का जज्बा और एक प्राकृतिक खुशी थी...प्राकृतिक इस लिए क्योंकि रोजमरा कि जिंदगी में हम और आप कितनी बनावटी हंसी हंसने को मजबूर होते हैं...आफिस के जिस सहयोगी से हम बात भी नहीं करना चाहते वो भी अगर हैलो बोले तो बनावटी हंसी से जवाब देना ही पड़ता है...और ये बात खासकर महिलाओं पर पक्के तरीके से लागू होती है...जहां पुरुष सहयोगियों को ना चाहते भी हाय-हैलो का जवाब देना पड़ जाता है...खैर ये बात तिहाड़ की महिला कैदियों पर लागू नहीं होती...क्योंकि वो बनावटी हंसी की दुनिया से बहुत दूर हैं...पुरुष प्रधान समाज से दूर हैं...इसीलिए मुझे एक बार भी नहीं लगा कि मैं जेल में हूं...कुछ महिला कैदियों से बात भी हुई...उनका कहना था क्राइम तो हो गया...लेकिन हमारी जिंदगी अभी बहुत लंबी है...हमें सुधरने का मौका मिला...हम समाज में जाकर अपने हाथों के हुनर से पैसे कमाएंगी...उनकी खुशी देखकर मुझे भी एक अच्छी सीख मिली कि हम फालतू ही दुखी होते रहते हैं...वैसे मैं और मेरी एक घनिष्ठ सहयोगी इस बात को मानते हैं कि इंसान तभी तक दुखी होता है जबतक वो दुखी होना चाहते हैं...हां कभी कभार हालात आपके बस के बाहर हो सकते हैं हमेशा नहीं....इसलिए किसी ने ठीक ही कहा है कि चिंता चिता समान...मुझे पता था कि मेरी ये स्टोरी हिट ही होगी...और जितना सोचा उससे अच्छा नतीजा मेरे सामने था...मेरी मां ने पहली बार मेरी किसी स्टोरी को देखने के बाद कहा कि बेटा तुम बहुत स्मार्ट लग रहे थे...मैंने मां को कहा कि एक महिला कैदी ने भी ये बात कही...मां ने कहा, मरजानी मेरे मुंडे को कही नजर तो नहीं लगा दी उसने...अब क्या बताता मां को... नजर तो पहले ही लग चुकी है...अब किसी नजर का कोई असर नहीं होने वाला....खैर उन तमाम करीबी लोगों का शुक्रिया जिन्होने गुड लक बोला था...जिनके चलते मुझे अच्छा काम करने की प्रेरणा मिलती है....
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bhai welcom back...itne din gayab rahe...mast likha hai...vaise dil-dimag dono se smart ho paji tusi...
ReplyDeleteawesum blog dost...kis duniya mein ho...na facebook na sms...wat happnd...unti kaise hai...kya ho gaya...plz take care...mis u
ReplyDeletefull marks 4 blog manu...vaise sweta hamare dost ko kuch toh huya hai..shock laga...laga...................tusi hamesha hasde vadiya lagde ho...
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