...भोपाल को आंसू बहाते 30 साल हो गए..इन 30 सालों में भोपाल गैस पीड़़ित परिवारों ने इतने आंसू बहाएं होंगे कि दर्द के नीर की एक नई झील छोटी पड़ जाए..इन 30 साल में 30 हजार लोगों ने जान तो गवाई ही साथ ही लाखों लोग जहरीली गैस के चलते कई गंभीर बीमारियों के शिकार हुए..सैंकड़ों परिवार तबाह हो गए..मुआवजे के लिए तरसते रहे..लेकिन बदले में कुछ नहीं मिला और जो मिला भी वो जख़्मों को नहीं भर सकता..जहरीली गैस का भूत तो आने वाली पीढ़ियों तक को बख्शने के मूड में नहीं..आज भी भोपाल में लाखों लोग भयंकर बीमारियों से जूझ रहे हैं..जैसे chest pain, emphysema, cancer..भोपाल और आसपास आज भी जन्म लेने वाले बच्चों में जन्मजात बीमारियां होती हैं जो बाकि देश से 10 गुना अधिक हैं..जानकार मानते हैं कि मध्य प्रदेश पुलिस की कैद से यूनियन कार्बाइड के प्रमुख वारेन एंडरसन को ‘दिल्ली’ के दबाव से 8 दिसंबर, 1984 को रिहा किया गया. और यह दिल्ली का दबाव किसी और का नहीं उस समय के प्रधानमंत्री राजीव गांधी का माना जाता है...हमारी सरकार ने यूनियन कार्बाइड के प्रमुख वारेन एंडरसन को उस समय देश से निकलने में पूरी मदद की जिसकी वजह से हजारों जानें गईं. मेरी दुआ है कि भोपाल गैस पीड़ितों को इंसाफ मिले और पूरा मुआवज़ा भी..क्योंकि भोपाल के दर्द को आंका नहीं जा सकता, सिर्फ बांटा जा सकता है..
बिन कहे,कैसे रहें
Sunday, November 30, 2014
Saturday, October 5, 2013
क्योंकि मैं पाकिस्तानी हिंदू हूं..
मैं नवंबर 2011 में अपने गृहनगर अमृतसर में था कि एक दोस्त का फोन आया कि सैकड़ों पाकिस्तानी हिंदू अपने घर छोड़ वाघा बार्डर पर आए हैं..जो हमेशा के लिए भारत में ही बसना चाहते हैं..मुझे लगा ये एक बेहतरीन स्टोरी है..जबतक मैं अपने घर से 25 km दूर भारत-पाक सीमा पर पहुंचता..वो काफिला आगे बढ़ गया..बस मुझे किसी तरह से ये पता चल पाया कि वो भारत में किसी धार्मिक जलसे में शामिल होने आए हैं..और वो राजधानी दिल्ली भी आएंगे..बस मैं तभी से उनके दिल्ली में पहुंचने का इंतज़ार करने लगा। पर राजधानी दिल्ली में उनका पता लगा पाना आसान नहीं था। फिर लगभग 40 दिन बाद उन लोगों का पता चला जब उन्होने गृह मंत्रालय में गुहार लगाई। तो मैं उस डेरे में अपने कैमरामैन के साथ पहुंचा..तो मुझे एक ऐसा मंज़र दिखा कि वो लोग जैसे अभी-अभी आजाद हुए हो...चेहरों में खौफ..डरी सहमी महिलाएं..कुल उस डेरे में 114 पाकिस्तानी हिंदू थे..पाकिस्तानी हिंदुओं ने मुझको बताया कि पाकिस्तान में उनके साथ बहुत ही बुरा सुलूक होता रहा है एक कन्हैया नाम के लड़के को कैंसर था..लेकिन कैमरे पर उसने भी भारत सरकार से भारत में बसने देने की गुहार लगाई..लेकिन उसके 2 दिन बाद ही उसका देहांत हो गया...सबसे पहले ये स्टोरी तेज़ चैनल पर प्रखर श्रीवास्तव ने चलाई और जितने लोगों ने देखी उनको अच्छी लगी...फिर आजतक में मेरे बॊस शम्स ताहिर खान की ने इसको बखूबी पेश किया और मेरे पास बधाईयों का तांता लग गया। ये स्टोरी मेरी सबसे अभी तक की सबसे बड़ी हिट स्टोरी साबित हुई..मुझे भी इसको करने बाद लगा कि इन लोगों के लिए कुछ अच्छा कर्म करने का मौका मिला..अभी ये पाकिस्तानी हिंदू दिल्ली के आसपास ही हैं और कोर्ट से उनको भारत में ही रहने की इजाज़त मिल गई है..ये स्टोरी बेस्ट स्टोरी कैटेगरी में 2 बार नॊमिनेट हुई और अब इसको गोयनका अवॊर्ड में भी भेजा गया..ये पाकिस्तानी हिंदू आज भी हमारे शुक्रगुजार हैं कि सबसे पहले हमने इनके दर्द को सरकार तक पहुंचाया और कन्हैया की आखिरी इच्छा भी पूरी हुई..कन्हैया चाहता था कि इन पाकिस्तानी हिंदुओं को भारत में बसने दिया जाए..कन्हैया का सपना सच तो हो गया लेकिन वो ये खुशी अपनी आखों से नहीं देख पाया..
Tuesday, July 24, 2012
Thursday, June 7, 2012
हादसों के इस शहर में...क्या पता कुछ भी नहीं
लाख चलिए सर बचाकर...फायदा कुछ भी नहीं
हादसों के इस शहर में...क्या पता कुछ भी नहीं
उस किराने की दुकान वाले को सहमा देखकर
मॉल मन ही मन हंसा..पर कहा कुछ भी नहीं
काम पर जाते मासूम बचपन की व्यथा
आंख में रोटी का सपना और क्या कुछ भी नहीं
कुछ दोस्त दिलों जान से मरते थे जिनपर
लेकिन कहा उनसे कभी कुछ भी नहीं
रात भर एकतरफा इश्क में आहें भरने का तो लिया पूरा मजा
लेकिन इजहार की हिम्मत जिगर में कुछ भी नहीं...
लिखवाई मुझसे भी दोस्तों ने इश्क पर कविताएं..
मेरी मदद का भी फायदा उनको मिला ज्यादा कुछ भी नहीं..
कुछ कामयाब होते. अगर दिल से सच में किसी को चाहा होता..
खुदा से मांगा भी..लेकिन खुदा को सच्चाई उनके इश्क में दिखी कुछ भी नहीं..
लाख चलिए सर बचाकर...फायदा कुछ भी नहीं
दुनिया में ज्यादातर इंसान समझता है खुद को तीस मार खान
खुदा ने बनाया इंसान को ऐसा कुछ भी नहीं..
दुख में इंसान को याद आता है भगवान
सुख में नजर आता कुछ भी नहीं
इस देवगन को नजर आते हैं..ज्यादातर मतलबी इंसान
अच्छे लोगों की गिनती ज्यादा कुछ भी नहीं..
लाख चलिए सर बचाकर...फायदा कुछ भी नहीं
हादसों के इस शहर में...क्या पता कुछ भी नहीं..
Thursday, May 24, 2012
Bas muskurana chahta hon main.aaaaaa
Ik aisa geet gana chahta hu mai
Khushi ho ya gham, bas muskurana chahta hu main !!
Dosto se dosti to har koi nibhata hai !Dusmano ko bhi sabak sikhana chahta hu mai!!
samay acha ho ya bura rab ko bhul nahi jana chahta hoon mai..
bas waheguru ke aage hi sar jhukana chahta hoon mai..
Is Devgan ke dost bade kam par sache hai..dushmano ko bhi yeh batana
chahta hoon mai..
na chahte huye kisi ka dil bhi nahi dukhana chahta hoon mai
haste khelte aise hi 26-27 saal wali jindagi bitana chahta hoon..
kuch alag kar gujrana chahta hoon mai
maa-baap ki duao ka asar dikhana chahta hoon mai..
khushi ho ya gham bas muskrana chahta hoon mai..
bas aise hi jeena chahta hoon mai......
.har baazi jeet jana chahta hoon mai..bas aise hi jeena chahta hoon mai..♥ ♥ ♥
Sunday, November 6, 2011
हिंदी....हिंदोस्तान में, क्यों हो हर जुबान पे...
हिंदी को भारत में राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं है...लेकिन राजभाषा होते हुए भी हिंदी भारत में वो कमाल कर जाती हैं जो शायद ही कोई ओर भाषा कर पाती...पत्रकारिता से जुड़े होने के चलते या वैसे कभी मुझे चाहे यात्रा करने कोई भी मौका मिलता है तो हिंदी की ताकत का अहसास हो जाता है...दुनिया भर में एक मुल्क से दूजे से संपर्क साधने में जो कमाल अंग्रेजी भाषा करती है... वही कमाल भारत में हिंदी करती है...उदाहरण के तौर पर पंजाब, गुजरात को ले सकते हैं...भाषा के आधार पर आज का पंजाब बना..हरियाणा को भाषा के आधार पर ही सियासी दलों नें पंजाब से अलग किया...पंजाब , गुजरात में हिंदी बोल समझ सकते हैं, लेकिन लहजा चाहे इतना शुद्ध हो ना हो...हिंदी को भारत के कोने-कोने तक पहुंचाने में बड़ा योगदान हिंदी फिल्मों का भी हैं...वो बात अलग है कि दक्षिण भारत पहुंचते हिंदी की हालत थोड़ी पतली हो जाती है....वहां पर लोग हिंदी समझ तो लेते हैं..बोलने में झिझकते हैं...आरोप लगते रहे हैं कि वो लोग हिंदी बोलना नहीं चाहते...शायद आजादी के बाद वो प्रसार हिंदी का वहां हो ना पाया हो...इसलिए वहां की फिल्म इंडस्ट्री भी अलग है...वहां तक हिंदी पहुंच भी कैसी पाती..भई हिंदी तो राजभाषा थी ना कि राष्ट्रभाषा....नार्थ-ईस्ट में भी हिंदी की हालत नाजुक ही हैं...मुझे लगता है कि माओवादी या विदेशी ताकतें भारत को तोड़ने की जो कोशिश करते हैं ..अगर हिंदी वहां भी मजबूत होती तो शायद ही उनको इतना बल ना मिलता.. भारत में हिंदी की ताकत को अहसास करना हो तो आप देख सकते हैं कि अब तक हिंदी पट्टी ने देश को कितने प्रधानमंत्री दिए...देश की राजनीति में हिंदी बेल्ट के नेताओं की कितनी तूती बोलती रही है...ये कहना गलत नहीं होगा कि पूरे देश को हिंदी एक धागे की तरह बांध कर रखने में अहम योगदान निभाती हैं...भले ही मेरी मातृ-भाषा जिसे पंजाब में मां-बोली कहते हैं पंजाबी है..लेकिन मेरा हिंदी के प्रति भी पूरा सम्मान हैं..क्योंकि हिंदी के चलते ही मैं ज्यादातर भारतीयों से जुड़ा महसूस करता हूं...
और इससे ही मेरी रोजी-रोटी भी चलती है...
और इससे ही मेरी रोजी-रोटी भी चलती है...
Saturday, October 29, 2011
जब अन्ना के रंग में रंगा ' तिरंगा'
20 अगस्त का दिन मेरी जिंदगी का एक रोमांचक दिन बन गया...अन्ना हजारे की बदौलत..अन्ना का आंदोलन 16 अगस्त को शुरु हुआ था और 20 अगस्त आते-आते ये जनआंदोलन चरम पर था। मैं अन्ना के आंदोलन पर एक स्टोरी करना चाह रहा था जो कुछ हटकर हो..मेरी एक सहयोगी ने कहा कि अन्ना के आंदोलन में तिरंगे कहां से आ रहे हैं, वो ऐसी स्टोरी कर सकती हैं...लेकिन व्यस्त होने के चलते वो चाह कर भी नहीं कर सकती...तुम क्यों नहीं करते मुनीष...मैं क्या बताता मैं तो पहले ही करने वाला था...लेकिन आइडिया को जल्द स्क्रीन पर भुनाना चाह रहा था..मैं अन्ना के ऐतिहासिक आंदोलन पर एक अदद स्टोरी करना चाह रहा था क्योंकि बचपन से ही जेपी आंदोलन के बारे में पढ़ते-सुनते आ रहा था...लेकिन जानकार इसे जेपी आंदोलन से बढ़ा मान रहे थे...इसलिए मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहता था...अन्ना का आंदोलन एक बड़ा आंदोलन इसलिए बनता जा रहा था क्योंकि हर भारतीय हाथ में तिरंगा लेकर रामलीला मैदान पहुंचना चाह रहा था...जो नहीं पहुंच रहा था वो भी टीवी पर देखकर इससे जुड़ा महसूस कर रहा था। देश से हर कोने से लोग आ रहे थे जो अपने को सरकारी नीतियों से त्रस्त मान रहे थे । हाथ में तिरंगा लेकर हमारे कैमरे पर बोलने वालों की कोई कमी नहीं थी...जनसैलाब इतना कि आंखें थक जाए लेकिन हर घंटे के साथ लोग बढ़ते जाए...लोग कहते थे, सर हम फलाने प्रांत से आए हैं, हम सिर्फ आपके चैनल पर ही कुछ कहना चाहते हैं...लेकिन मीडिया के इतने लोगों का भी मेला था जो अपने में भी एक रिकॉर्ड था जो लंबे समय तक कायम रहेगा..राजधानी दिल्ली में रमजान के महीने 24 घंटे तिरंगे बन रहे थे...कारीगर भी खुश थे, फैक्टरी मालिक भी...तिरंगा लेकर पहुंचे क्या बच्चे...क्या बूढ़े अन्ना के रंग में रंगे थे....नारा भी था "मैं भी अन्ना"। तिरंगे के साथ भारतीयों की नजदीकी क्रिकेट मैचों में तो हमने देखी ही हैं लेकिन मैं अपने गृह नगर के वाघा बॉर्डर पर भी देखता आया हूं...पर रामलीला मैदान झूमते भारतीयों की जो नजदीकी तिरंगे के साथ बढ़ी वो वाकये काबिलेतारीफ थी।
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